यूं ही बैठा था और
आँखें भर आई
जाने क्यूँ आज मन
उछल रहा है बचपन में जाने को, नादान से बनने को
माँ की याद दिल को
छू आई
याद है वो खुशबू जो
रसोई से आती थी
हाँ आज भी वो मुंह
में पानी लाती है
मुझे याद है वो दिन
जब किसी बात पे खूब रोया था
माँ आई और आँचल से
आंसुओं को पोछा
पर कई दिन बाद भी उस
आँचल को ना धोया था
जब भी परेशान-सा था,
याद है उसकी पुचकार
वो नरम धूप-सा उसका
आगोश, वो दुलार
गर आज भी परेशान
होता हूँ तो खूब खलता है वो रुआब
माँ कहने की देरी
है, और आ बैठती है मेरे ख्वाब
अब जब आ चुका हूँ एक
नए संसार में
माँ नहीं है पास
पूरे परिवार में
हाँ आज भी वो मीलों
दूर मेरे लिये हलवा बनाती होगी
आज भी मेरे जिद को
पापा से मनवाती होगी
फिर माँ के गोद से
सिरहाना बनाऊंगा,
माँ तेरे लिये नई
साडी लाऊंगा
पर जब सुनेगी तेरी
याद में रो रहा हूँ मैं
झट से बोलेगी ‘बसकर रोना’,
जा रह ले खुद के
संसार में
पर मेरी याद को ना
खोना
इन सितारों से सजे
आसमान का रंग मुझे बेकार लगता है
माँ के आँचल के पीछे
से झाकना आज भी बेकरार करता है
माँ एक बार फिर जो
गोद में उठा ले तो आसमां छू लूं
माँ एक बार फिर जो
गोद में उठा ले तो आसमां छू लूं