Wednesday 27 November 2013

मुझे एक दिन जाना, हूँ बिटिया किसी की

 
मुझे एक दिन जाना, हूँ बिटिया किसी की
वो बाबुल का आँगन, वो बाबुल की बगियाँ
क्यूँ छोड़ आई वो ममता की नदियाँ
मम्मी के आँचल में चुपके से छिपना
बहुत याद आवे वो छुप के निकलना
मैं रोई चिल्लाई और ये गलियां भी सिसकी
मुझे एक दिन जाना, हूँ बिटिया किसी की
 
वहीं छूटा बचपन, लड़कपन, शरारत
मैं आई पीया घर, कर खुद से बगावत
वो स्कूल जिसमें गई थी मैं पहले
वो रस्ते भी भूले जिसमें खूब टहले
सारी सहेली आईं विदा में
गले लग-लग रोई बस आंसू फिज़ा में
बहुत याद आता, भैया मुस्कुराता
वो दूज का टीका और रखिया उसी की
मुझे एक दिन जाना, हूँ बिटिया किसी की
मुझे एक दिन जाना, हूँ बिटिया किसी की

No comments:

Post a Comment