Friday 22 November 2013

क्या जिंदगी है आज ही या रुकेगी कल कहीं


क्या जिंदगी है आज ही या रुकेगी कल कहीं
तभी रुकेगी जिंदगी जब प्यार को हो पल नहीं
रुको नहीं चले चलो, झुको नहीं चले चलो
जो हार कि फटकार हो फिर जीत कि फसल वहीँ 

नया जोश होश हो, नई उमंग रोज हो
रोष भी समान हो, प्रेम में ही भोज हो
नहीं गिला किसी से अब और मौत से हो दोस्ती
नए बादलों तले नए शितिज कि खोज हो 

इंसान में प्यार से इंसानियत बनाइये
इंसानियत हो फलसफ़ा मजहब नया चलाईये
हो नदी में ज़ोर कितना, पतवार नई चाहिए
गर हों अँधेरे रास्ते बस लौ जलानी चाहिए.... बस लौ जलानी चाहिए

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