Saturday 7 December 2013

माँ (दोहे)....


माँ बसती रग-रग में, माँ ममता का सागर|
ले आ चाहे जितनी भर ले, अपने मन की गागर||

स्नेह भरी वो गंगा है, बिन उसके जीवन बेकार|
माँ ममता की सरिता है, निर्मल एक बयार||

चाहे मिलें हज़ार से, मिला ना माँ-सा अपनापन|
माँ का अदभुत प्रेम है, निश्छल जल-सा मन||

ईश्वर अल्लाह पूज के, पंडित भए संसार|
जो ना पूजा मात को, ये सब हैं बेकार||

माँ तो मेरा मूल है, माँ बिन एक ना आधा|
तू जो मेरे संग रहे, दूर रहे हर व्याधा||

हर कष्टों से दूर है रखा, पाला अपना लाल|
पल भर को भी समय निकाल, पूछ ले माँ का हाल||

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