Saturday 7 December 2013

लड़खड़ाए जब भी, खुद ही संभल गए

लड़खड़ाए जब भी, खुद ही संभल गए
कर याद रोए जब भी, खुद ही बहल गए
यूँ इंतज़ार में बरसों निकल रहे
मौसम बदल रहा, क्यूँ न तुम बदल गए 

है तस्वीर आपकी जो सामने यहाँ
ना दूर जाईये, दिल थामिये यहाँ
हैं संग रंग सारे मिजाज़ आपके
गज़ल लब्ज़ मेरे लब के गाईए यहाँ

इन निगाहों में मैं बस डूबता जाऊं
जिंदगी भूलता जाऊं, इशारे मानता जाऊं
है कुछ दिनों की जिंदगी
मैं गीत गाता जाऊं, मैं गुनगुनाता जाऊं

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