आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार
ऊँचे-ऊँचे पर्वत हिलते और हिलता जीवन
आधार
बड़े-बड़े गुम्बज के नीचे हिलते ‘पशुपतिनाथ’
जीवन का संचन था जिनसे खींचे उसने हाथ
बिखरा है घर-घर का कोना, बिखरा है बाज़ार
आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार
खाने को तरसे हैं बालक, प्यासी उनकी
प्यास
और माँएँ बच्चे को थामे ऐसी देखि लाश
जन-जन का जीवन सूना, सूना सारा देश
और वे मांगे आशाओं से दे-दे हमको भेष
ऐसे-वैसे कई कई देखे विपदा के प्रकार
आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार
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