उन्हें सामने पा घबराता क्यूँ है
नज़र को बोलने दे शर्माना क्यूँ है
दिल-ए-हाल भेजना था पर खाली कागज़ भेज
दिया
सब कुछ तो पता है उन्हें, फिर लिखना
क्यूँ है
आना था उन्हें इस शाम भी मिलने
जब मालूम है फिज़ा हमें, फिर इंतज़ार में
बरसना क्यूँ है
सुबह है, और पंछियों का चहकना शुरू है
जो सोये नहीं उन्हें जागना क्यूँ है
दो गीत, चार कविता और कुछ ग़ज़ल ही तो बची
हैं
बाज़ार की ज़रुरत में बेचना क्यूँ है
याद है, तुम्हारी ग़ज़ल-सी, कमल-सी मुस्कराहट
जो दिल में महक बसी हो, तो भूलना क्यूँ
है
... जो दिल में महक बसी हो, तो भूलना
क्यूँ है