देखो ये बदला वो बदला, मैं भी बदला
पर माँ तुम वैसी की वैसी हो
सर्द में नर्म धूप-सी मीठी
हाँ बिलकुल माँ जैसी हो
तुम पत्थर ना कोई मूरत हो
माँ, ममता की सूरत हो
चरणों में तेरे है जन्नत
तुम एक सुन्दर महूरत हो
दूर से सही पर तेरी महक पा लेता हूँ
कुछ याद हैं तेरी लोरियाँ,
बस उन्हें गुनगुना लेता हूँ .... बस उन्हें गुनगुना लेता हूँ
No comments:
Post a Comment